मुझे प्रेम को जीना है हर दिन
मुझे प्रेम को जीना है हर दिन
सोचती हूँ
अहा!!
कितनी सुखद
अनुभूति होती होगी न !
व्रत उठाना,
सजना संवरना
अपने प्रिय के लिए
किसी एक
विशेष दिन पर।
फिर असहज हो
सोचती ही रह जाती हूँ
कि कितना अप्रतिम होता
जो सिर्फ प्रेम ही आधार
होता।
क्यों प्रेम के
इंद्रधनुषी व्योम तले
हृदय की कोमल धरती पर
इस त्यौहार पर भी
कंटक अप्रत्याशित बिछोह का
ढका छिपा सा झांकता
दिखता है।
मुझे सिर्फ
प्रेम को ही जीना है,
हर दिन।

