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Kusum Joshi

Abstract

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Kusum Joshi

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मुझे कोई मेरा बचपन दिला दो

मुझे कोई मेरा बचपन दिला दो

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मुझे कोई फिर मेरा बचपन दिल दो,

वो हमदर्द साथी बिछड़े यार मिला दो,

मैं उड़ती पतंगों में खो जाऊं फिर से,

कि उन्मुक्त नभ में मैं उड़ पाऊं फिर से,


मैं फिर से वो गलियों में बेफिक्र घूमूँ,

की तितली पकड़ लूं कि माटी को चूमूँ,

कि फिर से खुला वो मैदान दिला दो,

एक बार वो बीती शाम दिला दो,

मुझे कोई फिर मेरा।


मैं गोदी में मम्मी की सो जाऊं फिर से,

कि पापा के कंधे में चढ़ पाऊं फिर से

फिर से मैं खेलूं वो खेल पुराने,

की फिर गुनगुनाऊँ पुराने तराने,


कि फिर से मैं साथ तुम्हारे झगड़ लूं,

कि जाने लगो तुम तो हाथ पकड़ लूं,

फिर से मुझे वो अधिकार दिला दो,

मेरे दोस्तों का वो प्यार दिला दो,

मुझे कोई फिर मेरा।


कि फिर से मैं बादल में चेहरा बनाऊं,

साबुन के रंगीन बुलबुले उड़ाऊँ,

फिर से करूं वो मासूम शरारत,

फिर से नई कहानियां बनाऊं,


कि तारों को गिनने की कोशिश करूं मैं,

गिरकर के उठने से फिर ना डरूं मैं,

फिर से मुझे वो हिम्मत दिला दो,

वो बचपन की सारी दौलत दिला दो।

मुझे कोई फिर मेरा।


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