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मुद्दत्तों बाद तेरी याद आई...

मुद्दत्तों बाद तेरी याद आई...

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मुद्दतों बाद तेरी याद आई…

खुश्क अधरों से तेरा नाम छलका…

एक मीठी नींद सिरहाने आई...

मुद्दतों बाद तेरी याद आई...।

मैं चला पड़ा सपनों में तुझसे मिलने

पार करके वो तंग गलियां और नुक्कड़ के ठेले

वो सूखे फूल देखकर, फिर चिरवासी यादें करीब आयीं...

मुद्दतों बाद तेरी याद आई...।

अब क्या करूँ? क्या ना करूँ? इसका कशमकश सा रहा

सोता-जागता, गिरता-पड़ता, मैं नींद में चलता रहा

वो सोते हुए सपनें देखकर, फिर चाल लड़खड़ाई...

मुद्दतों बाद तेरी याद आई।

जीना चाहता था दोबारा वो बीते हुए दिन,

वो गरीबी के दिन, वो फकीरी के दिन, वो बेफिक्री के दिन।

वो आज के कुछ चेहरों को देखकर, फिर आंखें भर आई...

मुद्दतों बाद तेरी याद आई...।

 


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