मत्तगयंद सवैया ३
मत्तगयंद सवैया ३
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दग्ध भई धरती जबसे सब ज्ञान का सार विसारन लागे ।
नीति -अनीति व धर्म -अधर्म विसार सभी मति मारन लागे ।
वेद- पुराण- कुरान -अजान व कर्म का मर्म अकारन लागे ।
राज व काज अकाज नहीं सब माल व हाल सुधारन लागे ।।