मतलब की बात
मतलब की बात
जब तक बनती थी मतलब की बात
जब तलक करती थी रोज़ मुलाकात
जब कहें दौड़ जाती दिन हो या रात,
तब तक देते, सब दिल से दुआ सौगात।
बढ़ने लगी अपनी भी कुछ मजबूरियाँ
दे नहीं पाती मेरा समय, बन गई दूरियाँ
कैसे कहलाएँगे वे लोग करीबी अपने ,
जिनके समय है, फिर मिटाई नजदीकियाँ
क्या अपने रिश्ते नाते इकतरफे होते हैं,
सहयोगी कदम आगे जो बढ़ाया, रोते हैं
मतलबी जहां में अपने न अपने होते हैं
अपनों ने बढ़ाई दूरियां, दर्शन सपने होते हैं।