मताधिकार का महत्तव
मताधिकार का महत्तव
गणतंत्र में सदा विद्यमान है मताधिकार का महत्तव,
इस प्राथमिक प्रभुत्व के समुचित समयोचित
व्यवहार हेतु चाहिए महत्तव।
मत पाने हेतु मतदाता के पास आएंगे जाएंगे चुनाव के प्रार्थी,
घोषणा पत्र देकर मतदाता के पास हो जाते हैं पूर्णतः परीक्षार्थी।
कुछ उम्मीद्वार प्रयास करेंगे देने के लिए उत्कोच,
यह क्षणस्थायी प्रलोभन है नैतिक रूप से निकृष्ट नीच।
अभ्यर्थी का हर एक वादा लगेगा जैसे भीष्म प्रतिज्ञा,
प्रतिश्रुति पूर्ण होने के लिए एकमत होना पड़ेगा
मतदाताओं की प्रज्ञा।
यदि पूर्ति नहीं हुआ है राजनैतिक विज्ञप्ति,
उस अनुपयोगी आवेदनकरी प्रति
अगली बार नहीं रखना है आसक्ति।
राजनीतिज्ञ के बजाय सभी हैं राजनेता,
अशिक्षित नेताओं तो केवल
और केवल हैं अभिनेता।
प्रजा प्रतिनिधि को प्रश्न पूछने का है अग्राधिकार,
मतदाताओं को सर्वदा
अवगत रहना चाहिए यह स्वाधिकार।