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Rashmi Lata Mishra

Abstract

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Rashmi Lata Mishra

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मत ढूंढ

मत ढूंढ

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नहीं नहीं भाई मैंने तुझेमना किया था पहले ही

नहीं मिलेगा वह मां का आंचल दोबारा ,

जिसके लिए तू ले आया है ,

मुझे इस वीराने में इन सुनसान जंगलों के बीच ।

इस जर्जर इमारत की नींव बस बच गई है ,

दीवारें अस्त-व्यस्त ध्वस्त हो चुकी हैं


कब से तू मां की तलाश में रोज निकलता है

और खाली हाथ उदास मन दिए लौट आता है

तू मान क्यों नहीं जाता जो पिताजी ने बताया हमें

कि हमारी मां बन गई है एक तारा

और चली गई है हमसे दूर बहुत दूर।


 वह देखो शायद ऊपर से वह हमें देख भी रही है

और तुम्हारी हरकतों से परेशान भी हो रही है,

 और दुखी भी अरे समझा रहा हूं तुझे मत ढूंढ

 इस वीराने में बेदर्द जमाने में तेरा दर्द कोई नहीं समझेगा

मेरे भाई मत ढूंढ तारा बनी मां को

 


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