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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

Abstract

मस्तियाँ हैं

मस्तियाँ हैं

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प्रेम है

जिम्मेदारियां हैं

जीवन है

लिखा हुआ है सब।

स्वार्थ है

सामाजिकता है

परम्परा है

एक सिलसिला है।


इतिहास है

और इसका एक भूगोल है कि

जब जब

ये बोझ बना है

जीवन पर

जीवन में

एक अजनबीयत सा

अपनापन

बिना दस्तक

जीवन को

अपने आगोश में ले लिया है।


इतिहास ने देखा है

मनुष्यता के

बदलते हुये भूगोल को

और हमने भी

ऐसा महसूस किया है

कि ये जो शोर है

जिम्मेदारियों का

>परम्परा का

बोझ सा जीवन पर

एक शब्द से

सुलग रहा है

सब कुछ जल रहा है

और एक नया

रास्ता बन रहा है


इतिहास का भूगोल बदल रहा है

और महसूस हो रहा है

प्रेम, प्रेम सा नहीं

प्रेम होता है

जीवन होता है

कोई कुछ भी कहे

जीवन है ही प्रेम

और मनुष्य है प्रेम में

अपने परमात्मा के साथ

जीवन युद्ध के मैदान में

जहाँ मस्तियाँ हैं

और जुनून भी है जीने का

जीत के अविश्वसनीय

आधुनिक

शक्तिशाली हथियार 

ऐसे ही हैं


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