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Himanshu Sharma

Abstract

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Himanshu Sharma

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मसख़रा

मसख़रा

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न जाने कितने अश्क़ पिए हैं,

कि होठों को हँसाने आया हूँ।


ग़मगीन हूँ, आँखें नम हैं अभी,

ग़मों का क़र्ज़ चुकाने आया हूँ।


दुनिया ने देखा है मुझको हँसाते,

ग़मग़ीन दिल को बहलाने आया हूँ।


बड़ी ही शिद्दत लगती है हँसाने में,

रोती हुई आँखों को हँसाने आया हूँ।


दिल हो जाता है यूँ शाद से नाशाद, 

नादान दिल में हँसी गुँजाने आया हूँ।


सुना है तेरे सपने भी अब ग़मज़दा हैं,

तेरे ख़्वाबों को चैन पहुँचाने आया हूँ।


गर तेरे तसव्वुरात में नहीं है हँसी तो,

तसव्वुर-ऐ-ग़म को मुस्काने आया हूँ।


लोग भूल जाते हैं अज़ाब मेरे कारण,

मैं ग़म से उसका हक़ हथियाने आया हूँ।


हँसी की उम्मीद करते हैं लोग मुझसे कि,

मुझे भी ग़म सताते हैं, ये बतलाने आया हूँ।


मेरे ग़मों-आँसुओं की परवाह न करना,

तेरी हँसी के बदले उन्हें लुटाने आया हूँ।


मुझ जैसे कई हैं हँसी के सौदागर यहाँ,

मैं उन सबके अफ़साने सुनाने आया हूँ।


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