मसख़रा
मसख़रा




मंज़िल मिल भी गई तो क्या होगा |
सफ़र का लुत्फ़ किरकिरा होगा।
उसकी फ़ितरत में वफ़ादारी है,
लाज़मी तौर पे वो सिरफ़िरा होगा।
उसके होठों से हंसी ग़ायब है,
अपने माज़ी से वो घिरा होगा।
वो सियासत के गुर से वाक़िफ़ है,
अपनी हर बात से फिरा होगा।
ग़मज़दा होकर भी मुस्कुराता है,
ग़ौर से देख वो मसख़रा होगा।