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Akhtar Ali Shah

Abstract

2.8  

Akhtar Ali Shah

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मरने को आसान बनाले

मरने को आसान बनाले

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हावी झूठ करो तुम इतना,

दहशत को भर दे रग-रग में।

बेसुध होकर बेचारा वो,

मरने को आसान बना ले।


जो हो नहीं, दिखाओ उसको, 

इस भांति समझाओ उसको।

उसकी मति पर हावी होकर,

ऊंगली पकड़ चलाओ उसको।


अभिमंत्रित कर दो तुम ऐसा,

बीनाई छीन जाए उसकी।

घर का मालिक होकर भी वो,

खुद को ही मेहमान बना ले।


हावी झूठ करो तुम इतना,

दहशत को भर दे रग-रग में।

बेसुध होकर बेचारा वो,

मरने को आसान बना ले।


तनमन से कर उसे अपाहिज,

छोटी कर दो उसकी साइज। 

अच्छा बुरा भूल जाये वो,

नाजायज को माने जायज।


जैसे तुम दिखलाओ देखें,

खुद को दास बनाले ऐसा।

अपनी परवशता को ही वो,

अपना दस्तरख्वान बनाले।


हावी झूठ करो तुम इतना,

दहशत को भर दे रग-रग में।

बेसुध होकर बेचारा वो,

मरने को आसान बनाले।


ताकतवर होते कब सारे,

घेरे रहते हैं अंधियारे।

साधारण व्यक्ति को पागल,

कर बोतल में कौन उतारे।


इसके लिए जरूरी है ये,

"अनंत" उसको करो परेशां।

प्रतिशोध की बात भूल वो,

नियति ही विषपान बनाले। 


हावी झूठ करो तुम इतना,

देहशत को भरदे रग-रग में।

बेसुध होकर बेचारा वो,

मरने को आसान बना लें।


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