मर्द को दर्द नहीं होता
मर्द को दर्द नहीं होता
अक्सर लोगों को कहते सुना है
जो मर्द होता है
उसे दर्द नहीं होता
वो दिखता तो है
मजबूत चट्टान सा
इसलिए दर्द को अपने छिपा लेता है
आंसूओं को आंखों में ही रोककर
वो कहीं चुपके से
दिल में रो लेता है
वो मर्द है
मर्द को दर्द नहीं होता है।
वो जब कभी उदास होता है
जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा होता है
अपनों के खुशियों के खातिर
बस काम के पीछे भागता है
ना खुद कि चिंता
ना खुद की फिक्र
बस अपनों के लिए जीता है
उनके अरमानों के लिए
जिंदगी अपनी दांव पे लगा देता है
वो मर्द है
उफ्फ तक नहीं करता
मर्द को दर्द नहीं होता है।
जब भी अपनों को
दु:ख दर्द में पाता है
रातों को नींद उसकी
दिन का चैन उड़ जाता है
उनकी जिम्मेदारियों को पूरा करते करते
कितने हसीं पल अपने खो देता है
फिर भी ना निराश,
ना उदास होता है
वो मर्द है
उसे दर्द नहीं होता है।
गम हो या लाख खुशियां
जिंदगी में उसके
वो एक सा रहता है
आंसूओं के सैलाब में नहीं बहता है
जब सब कुछ बिखर रहा होता है उसके
बस ख़ामोश खड़ा तकता रहता है
उसने बचपन से बस यही सुना है
मर्द रोते नहीं
वो मर्द है
मर्द को दर्द नहीं होता है।
