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Piyosh Ggoel

Abstract

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Piyosh Ggoel

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मॉनसून का त्यौहार

मॉनसून का त्यौहार

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बारिश की छम छम धरती पर पड़ी है

गिली मिट्टी की खुशबू चारो और , सुंदर यह घड़ी है

फूलो में नई महक है , उपवन महकाया है

झूला झूल रहे नन्हे बालक , लगता है मानसून आया है


अमृतवाणी झलक रही पक्षियों की चहचाहट में

शहद घुल रहा कानो में बारिश की खड़खड़ाहट से

प्रकृति खुश है बहुत , नृतकप्रिय आज नृत्य दिखाए

बारिश में खुशी से भिगते हुए कोयल चेहचाहे


सुखी नदियों में एक बार फिर जल भर आया

चैन से ली साँस इंसान ने जिसकी गर्मी से थी जर्जर काया

कहर बरसाने के बाद सूरज बादलो में जा छिपा

शितल शितल हवाओ के बीच खुशियों का इंद्रधनुष खिला

आज अरसे बाद देखने को मिली बाल क्रीड़ा जल में

जब अम्बर से बरसाया जल इस निर्जन थल पे

ये पानी की बूंदे हीरो से ज्यादा बेशुमार है

खुशी फैली चारो औऱ , आज मानसून का त्यौहार है


देखो ये प्यार का मौसम खुद कितना प्यारा है

प्यास से व्याकुल है जो धरती , उसका ये सहारा है

बादलो से घिरा है अम्बर , बिजली थर थर चमक रही

मिट्टी भी गिली होकर निराले ढंग से दमक रही


बस इतनी ही दुआ है ये बारिश की छम छम बाढ़ न बने

नदियों का पानी प्यास बुझाए कोई हैवान न बने

बारिश की बूंदे गिरती रहे , घर किसी का उजड़े नही

इस मानसून में दुख की बिजली किसी पर कड़के नही।


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