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Vijaykant Verma

Abstract

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Vijaykant Verma

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मोहब्बत कैसे हो

मोहब्बत कैसे हो

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ठूँठ हो जब हरियाली प्रेम की बतियाँ

कैसे हो मुरझाई इन कलियों में

मोहब्बत कैसे हो. .! 

पर्यावरण से जुड़े हुए हैं हर सपने अपने 

दम घोटूँ इस हवा में प्यार में ख़ुशियाँ कैसे हों..! 


कल कारखाने धुआँ उगलते,

जहर हवा में घोलें 

प्रेम की वीणा में वो सुरीलापन फिर कैसे हो..!

सूरज आग उगल रहा, भू बूंद बूंद की प्यासी

ऐसे में फिर प्रेम की सुमधुर रागिनी कैसे हो...!


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