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Shobhit Awasthi

Drama

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Shobhit Awasthi

Drama

मोडर्न मधुशाला

मोडर्न मधुशाला

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दारू की भी बात निराली

पीने बाद न बख़्शे हाली। 

जब दुनिया है खो सी जाती 

ये मुझको है गले लगाती। 


जोर लगा के मज़े दिलाती

अपने रंग में खूब नहलाती।

जाति, धर्म को भी ठुकराती 

ऊँच, नीच का भेद मिटाती। 


मंदिर मस्जिद मेल कराती 

तब मदिरा मधुशाला बन जाती। 

"बच्चन" को भी थी ये लुभाती  

पर अब है "शोभित" को भाती।


नए जोश का होश उड़ाती

नित्य नए नाटक करवाती।

पार्टी में भी रोअब जमाती 

सिगरेट संग है ताल मिलाती। 


अंदर वाली बात दबाती

मदिरा मय लीला करवाती। 

अभी कहने को तो बहुत कुछ बाक़ी     

बट आई थिंक इतना है काफी...।


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