मोड़
मोड़
जीवन मृत्यु के खेल में
आँंख मिचौली चल रही है,
मैं भोला मानुष अबूझ यहांँ
समय के फ़ेर को अनन्त मान,
बैठा हूंँ इस मोड़ पर
जब सफ़र अधूरा लगेगा,
फ़िर चल दूंँगा,
और थककर फ़िर मिलूँंगा
ऐसे ही किसी और मोड़ पर,
अबोध मन में ढेरों सवाल लिए,
फ़िर नई रात बुलाएगी,
फ़िर नई बाट निहारेगी,
मैं भोला मानुष ही सही,
जवाब तलाशने चलता रहूंँगा
उस मोड़ पर खड़ा हूँ मैं,
जहाँ से वही कहानी
एक तरफ पीछे़ दोहराई जाएगी
दूसरी तरफ़ चक्रव्यूह में शुरू की जाएगी|
मैं मोड़ पर खड़ा बाट जोहता हूँ
किसी तीसरे सफ़र की।