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Aditi Mishra

Abstract Inspirational

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Aditi Mishra

Abstract Inspirational

क्षितिज के पार

क्षितिज के पार

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आज ख़ुद को फिर से देखा,

दर्पण में नहीं, वरन एक सफ़र पर,

जैसे मैं कोई दर्शक हूँ भीड़ में,

और मंच पर कहानी चल रही हो मेरी.... 


देखा एक मासूम अक्स हवा के जहाज़ों पर,

जो लिए था तलवार पूर्वाग्रहों को ध्वस्त

करने के लिए,

देखा एक वीर योद्धा को अठखेलियाँ करते हुए,

लक्ष्य तक पहुँचने के जूनून को जीते हुए,

उस वीरान सी सड़क पर ख़ुद को चलते देखा,

याद आये वो ज़माने जब सड़कें समय की

मोहताज न थीं,

एक पल को लगा ये मैं नहीं हूँ,

मैं कहाँ सच से परे , बादलों के परे मैं नहीं हूँ..... 


वो रात के अंधेरे में अनगिनत सपनों को मनाना,

असंभव से इलाकों में अपनी सल्तनत बनाना ,

याद आये वो टूटे मोम के रंग और कच्ची पेन्सिलें ,

वो पुरानी किताबें जो दुनिया से दूर ले जाती थीं,

उन पीले पन्नों को ख़ुद को पढ़ते हुए देखा,

जैसे सदियों से मैंने कई धागे पिरोये थे,

मिलीं उन पन्नों में सूखी हुई कुछ पत्तियाँ ,

जिन में शायद अनदेखे शब्द उकेरे थे,

पर बंद हुईं वो किताबें तो सिमट गए वो किस्से,

भूले बिसरे हो गए वो झरोखे, वो पन्ने ,

जो ले जाते थे मुझे क्षितिज के उस पार.... 


जब छलक गया अस्तित्व अनजानी राहों पर,

और समझ न आया मंज़िल है कौन सी मेरी,

नदी के इस पर से सब ओझल होता लगा,

मैंने मुड़कर देखा तो पाया मैं वहीं हूँ,

उन्हीं इलाकों में नदी के उस पर,

अपनी सल्तनत में अनगिनत परछाइयों के बीच,

तो समझ आया कि वो दुनिया अब भी मेरी है,

अनछुई, अनदेखी, बाँहें फैलाये मेरे लिए,

देखती हुई मेरी राह, कि मैं जाकर अपना रास्ता चुनूँ.... 


मैं दर्पण भी हूँ और अक्स भी,

मैं दर्शक भी हूँ और नायक भी,

मैं ही वो मंच हूँ, मैं ही कहानी,

मैं जहाज़ भी हूँ और तलवार भी,

मैं योद्धा हूँ, और हूँ लक्ष्य,

मैं वही सड़क हूँ जिस में मैं मुसाफ़िर,

मैं ज़मीन भी हूँ और आसमान भी,

उन वीराने इलाकों की गूँज हूँ मैं,

मैं किताबों के पन्नों में हूँ और टूटी पेंसिलों में,

उन पत्तियों में हूँ और अदृश्य शब्दों में,

मैं झरोखों से निकलती धूप में भी हूँ,

और बादलों से गिरती बूंदों में भी हूँ,

मैं ही तो हूँ जो इस पार से देखे उस पार,

सूर्य के उदय से अस्त तक मैं हूँ,

समय की सीमाओं के परे मैं हूँ,

मेरी राह यहीं है, यहीं है वो दुनिया,

जहाँ से मेरा उद्गम होगा फिर से इसी क्षितिज से,

मैं भूत भी हूँ, वर्तमान भी, और भविष्य भी हूँ,

मैं इस कदम से उठकर नए क्षितिज की ओर अग्रसर हूँ...


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