मोबाइल का सहारा
मोबाइल का सहारा
मां के कमरे तक फैली उनकी दुनिया
वहां राज उन्हीं का चलता है।
कमरे से बाहर वह निकलती नहीं
किसी से भी वह मिलती नहीं।
मोबाइल चलाना सीख लिया उन्होंने
दुनिया मुट्ठी में कर ली उन्होंने।
बाहर भले ही उनकी कोई ना सुनता
मगर मोबाइल तो उनके मन की गति से ही चलता।
कभी सत्संग, कभी आनंद, सब कुछ उनको वहां था मिलता।
जब खाती थी फीका दलिया
यूट्यूब में 56 भोग था दिखता।
राजा परीक्षित सा मां को ज्ञान मिला था।
अब उसे मृत्यु का भी भय ही कहां था?
हर समस्या का समाधान मिला था।
मां को मोबाइल का साथ मिला था।
घर में अब हर बंदा खुश था।
क्योंकि मां को अब कोई ना दुख था।
अब वह किसी की इंतजार ना करती।
अपने दुखड़े हर वक्त रोती ना रहती।
कमरे से बाहर भले ही वह ना निकल पाती
लेकिन कमरे में ही सब सुख वह पाती।
उस दिन मां की नब्ज़ क्यों रुक गई?
हृदय की गति अचानक रुक गई?
मां को क्या हुआ समझ नहीं आ रहा।
कल लाइट गई थी तब से नेटवर्क नहीं आ रहा।
जी हां अब जीवन नेटवर्क पर भी निर्भर होगा!
यही भविष्य का जीवन होगा।
संगी साथी कोई ना होगा।
अपनो का भी साथ शायद ही होगा।
सभी व्यस्त होंगे खुद में ही।
बस एक मोबाइल का सहारा ही होगा।