मंजिलें आगे खड़ी हैं
मंजिलें आगे खड़ी हैं
मंज़िलें आगे खड़ी हैं
चल पड़ें रुकना नहीं।
मुश्किलों के खौफ से
पीछे हटें अच्छा नहीं।
राह जो बाधा बने
उस पर विजय पुल बाँध लें
जो इरादों पर अटल है
वो कभी हारा नहीं।
कोसते हैं भाग्य को जो
कर्म से मुँह मोड़कर
फल की चाहत किसलिए
जब बीज ही बोया नहीं।
व्यर्थ पिंजर में पड़े जो
पर कटे पंछी बने
क्यों मिले आकाश जब
उड़ना कभी चाहा नहीं।
ज़िक्र उसका अंजुमन में
किस तरह होगा भला।
जब गजल का व्याकरण ही
आज तक सीखा नहीं।
ज़िंदगी का राज़ क्या है
क्या करेंगे जानकर
क्यों मिला मानुष जनम
जब राज़ यह जाना नहीं।
