मंजिल
मंजिल

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सपनों का टूट जाना
टूट कर बिखर जाना
किरचा किरचा कर
खुद को समेटना।
और फिर चल पड़ना
उसी राह पर
आंखों में पहले सी
उम्मीद लिए।
नया विश्वास लिए
इक दिन हर दूरी
तय हो जाती है
मंजिल मिल ही जाती है।
हौसलों के आगे हमेशा
मुश्किलें हार जाती हैं।