मंजिल की तलाश
मंजिल की तलाश
मैं चलता रहता था मंजिल की तलाश में
क्या पता था वह तो हर पल रहती थी पास में
करी हुई मेहनत उसे लाते जा रही थी पास में
फिर भी मैं रहता था मंजिल कि ही तलाश में
वक्त लगा पर वह अब दे रही दिखाई है
कभी काम आई डिग्री कभी भगवान की रहमाई है
मुकम्मल है वो होता है सच में एक दिन पास में
ना भटको मेरी जान इधर उधर सब कुछ है अपने पास में
लाख आयें मुश्किलें तो क्या चलता रह तू बेशक आस पास में
कदम रुके ना तेरे, कंधे झुके ना तेरे, बेशक ना हो कोई साथ में,
अथक तुम चलते रहो, मंजिल और साथी होंगे कामयाबी पर साथ में,
चलता रहता था मंजिल की तलाश में ।।
