मंजिल की औऱ क़दम बढ़ाइये
मंजिल की औऱ क़दम बढ़ाइये
मंजिल की औऱ कदम बढाइये
गिरकर फिर उठ जाइये
किस्मत में क्या लिखा क्या नही लिखा
ये सोच कर ना घबराइए
विश्वास तो अपनी मेहनत पर हो
तो किस्मत भी बदल जाये ।
माना बहोत से मिलते लोग ऐसे
जो करते रहते दिन रात कड़ी मेहनत ऐसे
न रात का समय देखते ,न दिन की घड़ी देखते
लेकिन कभी -कभी साथ ना देती किस्मत ऐसे
मेहनत भी अपनी रंग ना लाती ऐसे
आँखो में आंसू आकर कई बार
दिल ठहर जाता ,मन बैठ जाता
कोसकर अपनी किस्मत फिर भी उठ जाता है वो ऐसे
वापस नई शुरुआत करता है वो ऐसे
की किस्मत भी एक बार तो शर्मा जाए
और आखिर किस्मत का एक
अमृत बून्द हाथों में गिर जाए।
इसलिए कह रहा तुमसे ये शब्दों का हमराही
भावनाओं को मेरी समझ
बढ़कर फिर एक बार नई कोशिश तो कर
अगर ये भी ना सही पर ऐसे
एक पेड़ से तो सिख ऐसे
उसके उन गिरते पतों को देख बराबर ध्यान से ऐसे
हर बार अपनी ऊर्जा , मेहनत से ,
अपना वजूद बनाता ऐसे ,
गर्म -सर्द सहकर अपना निर्माण करता ऐसे
रोज नए पते बाहर आते उसकी कोख से
लेकिन समय के लगान का होता है वो भी ऋणी ऐसे
देना उसको अपना अंग बारंबार
कभी पते ,कभी फूल , तो कभी फल और प्राण वायु ऐसे
इन तत्वों को बनाने में करता वो भी मेहनत जीवन भर ऐसे
पर , इस पर मिलता उसको कुछ नही
फिर भी हताश ना होता कभी वो पेड़
डटकर रहकर अपनी जगह अंतिम समय तक छाया तक देते ऐसे
अब तो मेरी बात समझ कह रहा शब्दों को हमराही तुमसे
उठकर एक बार प्रयास करो ऐसे
मंजिल भी खुद तुम तक आने को आतुर हो ऐसे
एक बार मंजिल की ओर कदम बढ़ाओ ऐसे ।