मंचों से प्रलोभन फैलाते
मंचों से प्रलोभन फैलाते
मंच पर मचलते लोग,
मिथ्या अभिनंदन करते ढोंग,
बंजर जमीं में बीज का ठेका खेल,
कहां उगते बीज नस्ल बदलते खेत।
मंचों से प्रलोभन फैलाते,
वक्त पर कहां मिल पाते।
अच्छे अच्छे को देखा है,
गिरगिट सा रंग बदलता है।
"संजीव" समझ सकता है,
पीड़ा जमाने की बदल सकता है,
संकल्प और विश्वास से भरा है,
कहां आदमी मंच पर खड़ा है।
