मन मे इच्छा
मन मे इच्छा
मन में इच्छा उत्पन्न होती है।
यह तृप्त हो जाता है और दूसरी
इच्छा उत्पन्न होती है।
दो इच्छाओं के बीच के अंतराल में
मन की पूर्ण शांति होती है।
जब मन पूरी तरह से ब्रह्म पर
केंद्रित हो जाता है,
तो वह ब्रह्म के साथ एक हो जाता है,
जैसे कपूर जो लौ के साथ एक हो जाता है,
जैसे नमक पानी से एक हो जाता है,
जैसे पानी दूध के साथ एक हो जाता है।
मन ब्रह्म में विलीन हो जाता है।
यह ब्रह्म के स्वभाव का हो जाता है।
यह कैवल्य या स्वतंत्रता की स्थिति है।
इसलिए ब्रह्म को जानने से मुक्ति का
मार्ग प्रसस्थ हो जाता है।
