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Neerja Pandey

Abstract

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Neerja Pandey

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मन की व्यथा

मन की व्यथा

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मन की व्यथा किससे कहूं,

बेहतर है चुप ही रहूं।


ना समझ पाएगा जहां,

तेरे मन की उसको थाह कहां।


मन की व्यथा किससे कहूं,

बेहतर है चुप ही रहूं।


मिल जायेंगे कई लोग यहां,

ओढ़े चोला मीत का।


पर तेरी जिन्दगी में,

आने ना देगें कोई मौका जीत का।


मन की व्यथा किससे कहूं,

बेहतर है चुप ही रहूं।


मन की व्यथा जब्त कर,

बस तू थोड़ा सब्र कर,


मन की कली खिल जायेगी।

जीवन में खुशियां आएगी।


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