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मन के पंछी

मन के पंछी

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जैसे भी हालात सही

मन के पंछी लौट भी आ

जैसे भी लौट के आ।


यहाँ समुन्दर सुख है

जनगणमन भी भूखा है

बादल रीता रीता है

जाने कैसा कोहरा है


धुँआ धुँआ सा बिखरा है

चारो ओर अंधेरा है

आवाजों पर पहरा है

जैसे भी हालात सही।


देख यहॉं खामोशी है

छायी बड़ी उदासी है

ज्ञान की गंगा ठहरी है

हवा भी सहमी सहमी है


तटरक्षक भी सोया है

अपनी धुनि में खोया है

सुबह पे शाम का पहरा है

जैसे भी हालात सही।


शब्द दिये सा जलता है

शोरशराबा बढ़ता है

जाने कैसी हवा चली

करुणा हमसे रूठ चली


दया धर्म भी दूर भगा

गहराता सन्नाटा है

राम भी छिपकर बैठा है

न्याय पे जुर्म का पहरा है

जैसे भी हालात सही।


कसम तुम्हारी खाते हैं

शीश भी तुझे झुकाते हैं

नया भगीरथ ला देंगे

गंगा नई निकालेंगे

सूरज नया बना लेंगे


धरती स्वर्ग बना देंगे

नया सवेरा ला देंगे

अपनी हवा बहा लेंगे

पाप पे पुण्य का पहरा है

जैसे भी हालात सही

मन के पंछी लौट भी आ।


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