मन हिन्दी में खो जाता
मन हिन्दी में खो जाता
माना कि 'अंग्रेज़ी' की लिपि
लिखना बड़ा लुभाता है;
'गणित' में जोड़-घटाना उसका
महत्त्व समझ में आता है।
'सामाजिक विज्ञान' को पढ़कर
समझ समाज यह आता है;
माना कि 'इतिहास' को पढ़कर
आँसू भर-भर आता है।
'रानी' थी जो लड़-लड़ अपने
प्राण न्योछावर कर बैठी;
'राणा' दुश्मन काट-मारकर
वीरगति को प्राप्त हुए।
पढ़ती न 'भूगोल' अगर तो
भला राज कैसे खुलता !
चक्कर काट रहा सूरज
या टिका हुआ है एक जगह।
न होता 'विज्ञान' अगर तो
'विद्युत' फिर कैसे होती !
उस 'विद्युत' की आभा में, मैं
हिन्दी भला कैसे पढ़ती !
जब-जब पढ़ती विषय और
मन 'हिन्दी' में खो जाता है;
'आधुनिक मीरा' की कविता
पढ़ना बड़ा लुभाता है।
'मैं नीर भरी दुख की बदली'
आँखों से आँंसू आता है;
कभी-कभी 'नौका विहार' में
मन मेरा ललचाता है।
कैसे झाँसी की रानी
अंग्रेजों पर थी टूट पड़ी;
खींच-खींच कर तलवारों से
कितनों का सिर काट गई।
'झाँसी की रानी' को पढ़कर
जोश ह्रदय में आता है;
जब-जब पढ़ती विषय और
मन हिन्दी में खो जाता है।
थी 'सरोज' को पीड़ा; थे मजबूर
'पिता' वह क्या करते !
नहीं सफल उपचार कोई;
वह छुप-छुप कर रोया करते।
पढ़कर पिता की पीड़ा को
हिय स्पंदित हो जाता है;
जब-जब पढ़ती विषय और
मन हिन्दी में खो जाता है।
'बच्चन जी' की कविता पढ़कर
नशा बड़ा छा जाता है;
'मधुशाला' को पढ़कर मानव
मतवाला हो जाता है।
'चिंतामणि' को पढ़कर मेरा
चित्त प्रसन्न हो जाता है;
लालच क्या है ! प्रेम है क्या !
फिर फर्क समझ यह आता है।
जब- जब पढ़ती विषय और
मन हिन्दी में खो जाता है।
हिन्दी 'नायक' विषयों की कई
भूमिका निभाती है;
राणा का 'इतिहास' है क्या !
क्या है 'भूगोल' समझाती है।
श्री प्रसाद जी 'गणित' को रच कर
कैसी 'गणित' बतलाते हैं;
'कुरुक्षेत्र' में दिनकर जी
'विज्ञान' हानि समझाते हैं।
'अंग्रेजी' की समझ यह हिन्दी
पढ़कर भी तो आती है;
'सामाजिक विज्ञान' तो हमको
हिन्दी भी बतलाती है।
हिन्दुस्तान में रहकर शर्म क्यों
हिन्दी पर ही आती है;
देश की भाषा धिक्कारे;
अंग्रेज़ी ही क्यों भाती है !
मुझे विषय तो भाते सब
'हिन्दी' से गहरा नाता है;
जब-जब पढ़ती विषय और
मन हिन्दी में खो जाता है।
