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कीर्ति जायसवाल

Abstract Inspirational Others

5.0  

कीर्ति जायसवाल

Abstract Inspirational Others

मन हिन्दी में खो जाता

मन हिन्दी में खो जाता

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माना कि 'अंग्रेज़ी' की लिपि

लिखना बड़ा लुभाता है;

'गणित' में जोड़-घटाना उसका

महत्त्व समझ में आता है।


'सामाजिक विज्ञान' को पढ़कर

समझ समाज यह आता है;

माना कि 'इतिहास' को पढ़कर

आँसू भर-भर आता है।


'रानी' थी जो लड़-लड़ अपने

प्राण न्योछावर कर बैठी;

'राणा' दुश्मन काट-मारकर

वीरगति को प्राप्त हुए।


पढ़ती न 'भूगोल' अगर तो

भला राज कैसे खुलता !

चक्कर काट रहा सूरज

या टिका हुआ है एक जगह।


न होता 'विज्ञान' अगर तो

'विद्युत' फिर कैसे होती !

उस 'विद्युत' की आभा में, मैं

हिन्दी भला कैसे पढ़ती !


जब-जब पढ़ती विषय और

मन 'हिन्दी' में खो जाता है;

'आधुनिक मीरा' की कविता

पढ़ना बड़ा लुभाता है।


'मैं नीर भरी दुख की बदली'

आँखों से आँंसू आता है;

कभी-कभी 'नौका विहार' में

मन मेरा ललचाता है।


कैसे झाँसी की रानी

अंग्रेजों पर थी टूट पड़ी;

खींच-खींच कर तलवारों से

कितनों का सिर काट गई।


'झाँसी की रानी' को पढ़कर

जोश ह्रदय में आता है;

जब-जब पढ़ती विषय और

मन हिन्दी में खो जाता है।


थी 'सरोज' को पीड़ा; थे मजबूर

'पिता' वह क्या करते !

नहीं सफल उपचार कोई;

वह छुप-छुप कर रोया करते।


पढ़कर पिता की पीड़ा को

हिय स्पंदित हो जाता है;

जब-जब पढ़ती विषय और

मन हिन्दी में खो जाता है।


'बच्चन जी' की कविता पढ़कर

नशा बड़ा छा जाता है;

'मधुशाला' को पढ़कर मानव

मतवाला हो जाता है।


'चिंतामणि' को पढ़कर मेरा

चित्त प्रसन्न हो जाता है;

लालच क्या है ! प्रेम है क्या !

फिर फर्क समझ यह आता है।


जब- जब पढ़ती विषय और

मन हिन्दी में खो जाता है।


हिन्दी 'नायक' विषयों की कई

भूमिका निभाती है;

राणा का 'इतिहास' है क्या !

क्या है 'भूगोल' समझाती है।


श्री प्रसाद जी 'गणित' को रच कर

कैसी 'गणित' बतलाते हैं;

'कुरुक्षेत्र' में दिनकर जी

'विज्ञान' हानि समझाते हैं।


'अंग्रेजी' की समझ यह हिन्दी

पढ़कर भी तो आती है;

'सामाजिक विज्ञान' तो हमको

हिन्दी भी बतलाती है।


हिन्दुस्तान में रहकर शर्म क्यों

हिन्दी पर ही आती है;

देश की भाषा धिक्कारे;

अंग्रेज़ी ही क्यों भाती है !


मुझे विषय तो भाते सब

'हिन्दी' से गहरा नाता है;

जब-जब पढ़ती विषय और

मन हिन्दी में खो जाता है।


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