मलिन हृदय।
मलिन हृदय।
मलिन हृदय मैं लेकर प्रभु जी किस भी तो तुम्हें पुकारूँ।
हे जगत पिता! मुक्तिदाता!मैं मन ही मन घबराऊँ।।
देकर मुझको निर्मल काया, भेज दिया तुमने इस जग में,
समझ सका न तुम्हारी माया, करता रहा जो आया मन में,
फंस गया भव-जाल में ऐसे, कैसे पीछा मैं छुड़ाऊँ।।
वाणी कर्कश, नैन गर्वीले, कभी न तुझको धाया,
आंख मूंदकर जब भी देखा, संसार ही नजर आया,
सुनकर तेरी यश गाथा को, कैसे भजन सुनाऊँ।।
दोहरा चरित्र मैंने अपना कर, सदा ही धोखा खाया,
पाकर तुम्हारी कृपा को फिर भी, कभी न शीश झुकाया,
"नीरज" सब कुछ हार बैठा, अब क्या कर हार चढ़ाऊँ।।