मलिन- हृदय
मलिन- हृदय
मैं यह नहीं जानता तुम कहाँ हो ,मगर सब कुछ तुम देख रहे हो ।
अंतर्मन की बातों को ,तुम तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा हूँ।।
जाने -अनजाने ना जाने ,कितनी गलतियाँ कर रहा हूँ ।
करना नहीं चाहता ,फिर भी अपने को रोक नहीं पा रहा हूँ।।
चाहते हुए भी ,आप के नक्शे-कदम पर चल नहीं पाता।
खुद से इतनी नफरत है कि, उसे कह नहीं पा रहा हूँ।।
ऐ मेरे! प्राणों से भी प्यारे ,मुझे अपनी शरण में जगह दे दो।
ग्लानि भरी जिंदगी को लेकर, जीवन का बोझ उठा रहा हूँ।।
आशा फिर भी तुमसे इतनी मुझे है, ए !मेरे मालिक ।
"मलिन ह्रदय" लिए यह "नीरज" कृपा की भीख माँग रहा हूँ।।