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मकसद

मकसद

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अपने पंखो को, यूँ ना रोक,

ज़माने के डर से, उन्हें ना टोक।


रहे समय का मांझा, उलझा उनपे,

या हो समय की दरखास्त,

उलझाने की उन्हें।


जिम्मेदार के, बोझ में हो भीगे,

या आक्रोश की, आग में हो जले,

बस जीना एक, मकसद ना रहे।


पंख कट जाएँ तो, उड़ने का ख्वाब ना भूल,

नहीं तो दिन काटते-काटते, बन जाएगा धूल।


जिंदगी का असली, मकसद जान,

जो है तेरी गलती, उसे पहचान।


तेरे सपनों में, हो सूर्य-सी तपिश,

और मन हो, चंद्र-सा शीत,

जो हार तू समझ बैठा, उस लड़ाई को तू जीत।


क्यूँकि ज़िन्दगी लंबी, नहीं बड़ी रहे,

और हारने से, कभी ना डरे।


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