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Riyaz Khan

Tragedy

3  

Riyaz Khan

Tragedy

मज़लूम कि आवाज़

मज़लूम कि आवाज़

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आज आग के लपटों में है वतन मेरा

शहादत बेकार गई शहीदों की, 

आज कातिलों के हाथों में है वतन मेरा

आज़ादी ज़ंजीरों में है 

गुलामी की ओर है वतन मेरा ।।


जो सींचा गया था बुजुर्गो के खून से

उस ज़मीन के बंटवारे को है वतन मेरा

ग़द्दारों को भारत रत्न कि बात करते हों

क्रांतिकारियों कि बदौलत हैं वतन मेरा

आवाज़ दबा दी जाती है सच्चाई की आज

बन्दूक के दम पर चल रहा है वतन मेरा ।।


इन्साफ़ की आँखें तो नोच ली गई हैं

मार कर इंसाफ कर रहा है वतन मेरा

फासिज़्म का परचम जो उरूज़ पर है

घड़ी घड़ी जल रहा है वतन मेरा ।।


मज़हबों की दीवारें नफ़रतों की

ईंटों से क्यों बना रहे हो

ऐसा तो कभी ना था वतन मेरा

संविधान का संशोधन अगर

अच्छा ही है तो क्यों 

आज आग की लपटों मे है वतन मेरा

शहादत बेकार गई शहीदों की,

आज कातिलों के हाथों में है वतन मेरा ।।

                



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