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Riyaz Khan

Romance

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Riyaz Khan

Romance

आखिरी मोहब्बत !

आखिरी मोहब्बत !

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बग़ीचे की खुशबू तितली को वहाँ तक ले आई

वही खुशबू उसे मौत के कगार पर ले आई !

वो चाँद है उसकी चांदनी में चलना अच्छा लगा

वो शजर है उसकी चाऊँ में सोना अच्छा लगा !


ये चाँद, शजर, तितली ये ख्वाब इस ख्वाब की

एक खूबसूरत इमारत थी वो !

पहली नहीं कहता मैं मेरी आखिरी मोहब्बत थी वो !


समुन्दर की गहराइयों से गुज़र रहा था में

शहर की गलियों से जून्ज रहा था में !

नजर ना लगें खाला धागा बाँदा था उसने

ख़ुदा को नहीं मानता था मैं

दुआ को मेरा हाथ उठवाया था उसने !


नमाज़ पढ़ रहा था मैं मेरी आखिरी रकाअत थी वो

पहली नहीं कहता मैं मेरी आखिरी मोहब्बत थी वो !

इश्क़ हे उसे खुदा नहीं कहता हूँ मैं

मुशरिख ना होजाऊं डरता हूँ मैं !


मुसाफिर मिले थे अनजाने होकर

बिछड़े थे हम जानकर !

वो थो नहीं रही रही उसकी यादों से कहता हूँ आहिल

मुझे लिखना है और प्यार कर !


पायल की घुंघरू निकाले रखा था

मुझे एहसास दिला उसके होने का आवाज़ कर !

इश्क़ और इन्किलाब का संदूक है मेरी ज़िंदगी

मेरे यादो की अनमोल दौलत थी वो !

पहली नहीं कहता मैं मेरी आखिरी मोहब्बत थी वो !


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