मजदूर हैं हम
मजदूर हैं हम
बेशक हम मजदूर हैं
मगर नहीं मजबूर हैं
मेहनत कर के खाते हैं
कहीं हाथ नहीं फैलाते हैं
तुम्हारे जो महल सुशोभित हैं
हमारे हाथों से प्रत्यारोपित हैं
तुम्हारे शीशमहलों को हमने ही चमकाया है
खुद अपना घर हमने चाहे तिनकों से बनाया है
तुम्हारी ऊँची इमारतें हमने ही बनाई आलीशान ,भव्य
खुद चाहे होता हो फुटपाथ ही हमारा गंतव्य
हमारे बनाए फर्नीचर से ही तुम्हारा घर- ऑफिस अलंकृत
हमारे घर के फर्नीचर चाहे चारपाई तक ही सीमित
हमारे ही दरवाजों फाटकों के भीतर सुरक्षित हो तुम सबसे
हम चाहे खुले आसमान के नीचे लड़ते लू, वर्षा, शीत लहर से
तुमको तो हम मक्खन मार के नान पराठा खिलाते हैं
खुद अपने घर की रोटी और प्याज से भूख मिटातें हैं
तुम्हारी गाडियाँ भरतीं फर्राटे जिन रास्तों सड़कों से
उन को हमने ही बनाया अपने स्वेद के कतरों से
हम गर्वित हैं काम पर अपने, जीते हैं स्वाभिमान से
हम न होते तो तुम कैसे रह पाते इतनी शान से।
