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Dheerja Sharma

Abstract

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Dheerja Sharma

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मिट्टी हूँ

मिट्टी हूँ

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मिट्टी हूँ मैं

कहाँ जाऊंगी?

इधर से बह कर

उधर पहुंच जाऊंगी।

ऊपर से उड़ कर

नीचे आ जाऊंगी।


बैठ जाऊंगी नयी जगह

नये पेड़ पत्तों पर।

नये नये रूप में

मैं ढल जाऊंगी।

हर बदलते मौसम की

मार झेल जाऊंगी।

मिट्टी हूँ मैं

कहाँ जाऊंगी?



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