मित्र का वो पत्र
मित्र का वो पत्र
यत्र तत्र सर्वत्र प्यारा हमारा वो पत्र,
लिखा तब था जब बना वो मित्र।
आज भी पुस्तक में बंद है वो प्यार पत्र,
मन पर अंकित यादों का वो चित्र।
लिखी कुछ बातें पुरानी,
तेरी मेरी थी वो कहानी।
चर्चा हुई सबकी जुबानी,
मैंने किसी की ना मानी।
मुलाकात हुई जानी पहचानी,
ऐसी थी हमारी वो जवानी।
सूनी हो गयी थी वो गली,
आजतक दिलवाली नहीं मिली।
पता नहीं होने के कारण
जिसे नहीं भेजा,
रो रो कर आज तक उसे सहेजा।
दुखड़ा किस से कहें, सूना पड़ा है कलेजा।
जान अटकी है ऐसी,
बिना उसके कैसे जिए जा।