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मिलो तुम तो

मिलो तुम तो

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मिलो तुम तो दिखे कितने नजारे

नदी को मिल गये अब तो किनारे


सही रस्ते से भटके हैं मुसाफिर

न जाने कब मिलेंगे अब सहारे


तुम्हारे आने से मेरे बदन में

खुशी की उड़ रही हैं ये फुहारें


हँसी चल दी लबों से और खुशी भी

गये जब तुम हुई गुम ये बहारें


न साथी हैं, न कोई अपना लगता

नहीं कोई मुझे जो अब सँवारें


हो तुम प्यारे, मोहब्बत है तुम्हीं से हमें

लो मन से हो गए हम तो तुम्हारे


शिकायत, शिकवा भी करते हैं हमसे

जो रूठे आज ये अपने हमारे।।


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