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gyayak jain

Abstract

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gyayak jain

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मिलकर राम बने

मिलकर राम बने

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हर रोम धर्म का धाम बने,

जग के दुःखों का समाधान बने,

रग-रग ओमकार नाद कहे।


माथे पर तेज सुमार रहे,

दर्द-शोक भय का इलाज रहे

हर उँगली बने मुष्ट मिलकर,

ग्यारह की गिनती मान रहे।


हर ऊँगली में दम भरमार रहे,

बन मुट्ठी जो फौलाद बने

हर सांस में गिनती राम की हो

तब साथ मिले रघुराम कहे।


-ज्ञायक


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