महामानव
महामानव
राम नाम का चादर ओढ़े
खुद का दाग छिपाते हैं ,
मंदिर-मस्जिद का भेद बताकर
आपस में लड़वाते हैं ,
गंगाजल से तन तो धोते..
मन मलिन रह जाता है ,
दूसरों पर जो छींटा कसते
वही महंथ बन जाते हैं ,
भारत है, संतो की धरती
गुरु नानक और कबीर की बस्ती ,
मानवता का हमें पाठ पढ़ाती...
बलिदानों की कथा सुनाती ...
दधीची करते यहाँ अस्थि दान
कर्ण बचाते, कुंती का मान
संतो की जो राह पकड़ते
महामानव, वही बन जाते हैं।