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Ruchika Rai

Abstract

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Ruchika Rai

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मेरो माँ

मेरो माँ

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माँ मेरे दुख सुख की सच्ची साथी,

जैसे लगे दीया संग हो जलती बाती,

अँधेरे में रोशनी बन वह जीवन में आती,

जीवन के सारे अनुभव वह मुझे बताती।


बनकर ढाल सदा ही वह संग खड़ी रही,

मेरे लिए हर मुश्किल में वह अड़ी रही,

मेरे हौसलों को सदा ही हिम्मत देती,

समभाव से सुख दुख में वह पड़ी रही।


उसने हर मुश्किल में मेरा साथ निभाया,

हर आँसू को पोंछ मुझे सदा ही हँसाया,

मेरे अंदर आत्मविश्वास को जगाकर,

स्वावलंबन का पाठ सदा ही पढ़ाया।


उनके ही

दम से मेरे अंदर आई हिम्मत,

जमाने की गलत बात पर की बगावत,

हर बार मुखर होकर मैं खड़ी हो पाई,

डटकर खड़ी हुई जो थी जरूरत।


मैंने लोगों की सहानुभूति भरे शब्दों को टोका,

दया दिखाने से उन्हें मैंने सदा ही रोका,

अपनी पहचान मैंने अपने दम पर सदा बनाईं,

नही झूठ बोला नही दिया किसी को धोखा।


मेरी माँ के कारण ही जमाने से नजर मिला पाई,

सही गलत का भेद उन्हें मैं खुलकर बताई,

बताया दृढ़ता ही जीवन की असली पहचान है,

जीवन का मैं नया नजरिया सबको है सिखाई।


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