मेरी माँ मेरी पहली गुरू
मेरी माँ मेरी पहली गुरू
चलना भी सिखाती है,
संभलना भी सिखाती है।
समय को बाँध मुट्ठी में,
बदलना भी सिखाती है।।
मेरी माँ, मेरी पहली गुरू,
अभिमान है मेरा
जीवन के स्वरूपों में,
हमें ढलना सिखाती है।
चलना भी सिखाती है,
संभलना भी सिखाती है।
समय को बाँध मुट्ठी में,
बदलना भी सिखाती है।।
मेरी माँ, मेरी पहली गुरू,
अभिमान है मेरा
जीवन के स्वरूपों में,
हमें ढलना सिखाती है।