मेरी कविता
मेरी कविता
एक छोटे खेत सी मेरी कविता
कागज भी दिखता चौकोर खेत
जैसा मेहनत से विचारों के
बीज जो मैंने बोए संवेदनाओं की
खाद इसमें थी मैंने डाली
भावनाओं के पानी से
जो इसको सींचा
शब्दों से खेत में उगे
सुन्दर-सुन्दर पौधे
कितनी ही बार पौधे जो
मेरे मुरझाए फिर से
प्रेम रुपी पानी इसमें था डाला
कभी मैं हँसी थी कभी
मैं थी रोई सभी भावनाओं को
इसमें जब मिलाया
तब शब्दों रुपी पौधे
मेहनत से आए
खेत जब मेरा फसल से
लहलहाया कविता ने भी
कागज़ पे रूप अपना पाया।
