मेरी कृति
मेरी कृति
गर्व है मेरे शिल्प पर
मेरी कल्पना में बसे चित्र का,
अपने आदर्श, अपने एहसास
ओर विरासत में मिले संस्कारों की
मिट्टी से मैंने एक सर्जन किया,
खुद के लिए
सोचा बुढ़ापे में कोई तो चाहिए
एक बेहद सुंदर ओर
खिलखिलाता सर्जन
मेरी ही प्रतिकृति सा,
हर करतब में माहिर,
हर विधा का फ़नकार बनाया
मैं हैरान हूँ ये मेरा ही अंश है ?
चौड़ा सीना लंबा कद चाल में
अजब रवानी है,
देखते ही देखते
पलता बढ़ता छह फूट का
बाँका जवान वो बन गया.!
एक दिन आकर कानों में
मेरे एसा कुछ गुनगुना गया,
आज्ञा दो मुझे जाना है
माँ भारत की रक्षा करने,
सरहद का चौकीदार बन
दुश्मन को हराना है.!
डर था मुझे जिस बात का
वो बात खड़ी थी सामने.!
कैसे सौंप दूँ इकलौता है
बूढ़े बाप की जान है.!
बोला वो बापू हर कोई जो
आपकी तरह ही सोचेगा,
सूनी पड़ेगी सरहद अपनी
फिर कौन करेगा रखवाली.!
बेटे तेरे मोह ने मुझको
अंधा गूँगा बना दिया.!
जा तू कदम बढ़ाकर अपने
मकसद को उड़ान दे.!
गया सपूत था छह फूट का
वर्दीधारी बनकर,
लौटा क्यूँ टुकड़ो में
तन पर तिरंगा लपेटकर.!
नाज़ है मुझको मेरी कृति पर
आँसू नहीं बहाऊँगा
देश की ख़ातिर इतना तो
बनता मेरा भी कुछ फ़र्ज़ है।