मेरी कलम
मेरी कलम
लिखने दो मेरी कलम को,
बेपारवाह अभिव्यक्त करने दो,
मैं लिखूंगा बात आने वाले कल की,
एक नए बदलाव की ,
मेरीकलम में क्रांति के स्वर हैं,
मुझेपिरोने दो वो गीत जो मेरे अंदर हैं।
मेरी कलम कोई मुजरिम नहीं,
मेरी कलम ने कोई गुस्ताखी भी ना करी,
फिर क्यूं मेरी कलम बेड़ियों में जकड़ी पड़ी हैं,
क्यूं अभिव्यक्ति की आज़ादी अपना दम तोड़ चुकी हैं,
कहना हैं मेरी कलम को बहुत कुछ,
नव विचारों में निहित वो अब ना रह सके चुप।
मेरी लिखाई मेरे अंतर मन का प्रतिबिंब होगी,
मेरे विचारों की अभिव्यक्ति होगी,
अंधेरे में सिमटे,
दूर रूठे बैठे हैं सवेरे,
बस रौशनी ही लिखनी हैं,
अपनी कलम से नई किरण ही मुझे लिखनी हैं।
ना छीनो मुझसे आज़ादी अभिव्यक्ति की,
मैं मांगता हूं सांसे अपनी कलम की,
मौन हो गई जो कलम मेरी,
ना जी सकेगी एक घड़ी भी,
मेरे सवाल मेरी कलम हैं,
मेरी पहचान मेरी कलम हैं।