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Arvina Ghalot

Abstract

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Arvina Ghalot

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मेरी देहरी के गुलमोहर

मेरी देहरी के गुलमोहर

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मेरी देहरी के गुलमोहर

सूरज की तपिश ने तपाया है

कुन्दन बन के निखार आया है

मेरे द्वारे पे खुशीयों की सोगात । 

आज मोहरों से बिखर गए हो।


मेरी देहरी के गुलमोहर

पूर्वज हो तुम मेरे वर्षों से खड़े

 हर पल दुआ बन के बरसे हो।

 निरमल है, तुम्हारी छाया 

 मेरे घर को भीषण गर्मी से बचाया।


मेरी देहरी के गुलमोहर

चटक लाल लाल कलियाँ

फूल बन बिखरी गलीचे सी 

पग जो में धरु अपने कोमल

तुम खड़े पूरवईया संग मुस्काये


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