मेरा चाँद...
मेरा चाँद...
तू चाँद, मैं तेरी चाँदनी होने लगा हूँ
तेरी आँखों संग सपने बुनने लगा हूँ,
इस बेरंग होती ज़िन्दगी में
संग तेरे कुछ रंगों को भरने लगा हूँ
तू चाँद, मैं तेरी चाँदनी होने लगा हूँ
सच कहूँ तो
थोड़ा गंवार था मैं
अपनी ही धुन का राह्गार था मैं
मौसम-ऐ-पतझड़ अब भूलने लगा हूँ
तू मेरी बसंत, मैं तेरा बसंती होने लगा हूँ
जख्मों को अपने छुपाता हूँ तुझसे
ऐबों को अपने हटाने लगा हूँ
जीने का सलीका नहीं था लिबास में मेरे
इनमें सलीके की धूप भरने लगा हूँ
तू मेरा चाँद, मैं तेरी चाँदनी होने लगा हूँ
तेरी आँखों संग सपने बुनने लगा हूँ
बेचैन हो उठता हूँ हिज्र के डर से
अपनी सांसे, तुझे जो बनाने लगा हूँ
ना आए अमावस इस दुनिया में हमारी
दीपक बन ख़ुद को जलाए खड़ा हूँ
तू चाँद मैं तेरी चाँदनी होने लगा हूँ