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प्रियम श्रीवास्तव

Romance

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प्रियम श्रीवास्तव

Romance

मेरी चाँद

मेरी चाँद

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उसने मुझसे पूछा,

मेरे चाँद के बारे में कि

मेरी चाँद कैसी हो,

मैनें उसे बताया-


मेरी चाँद,

जो सबसे अलग हो,

जो हँसे तो मोतियों की बरसात हो,

उसके चेहरे की चमक और ललाट,

सबकुछ बयां कर दे

जब भी कभी अपनेपन की बात हो, 

तो वो मेरी और सिर्फ मेरी हो,

जब भी वो करे बातें तो,

उसके लब से निकले हर वो एक शब्द में,

मैं बस खो जाऊँ!

मेरी चाँद!


मेरी चाँद,

जब भी अपने गीले बालों को झटके तो,

उसकी बूंदों की गहराई मेरे चेहरे पे पड़े,

और उसकी अहमियत को बताये,

जब वो अपने बालों की चोटी बनाये-

तो मासूमियत की मूरत लगे

और-

जब वो बाँधी चोटी को खोले,

फिर,

उसके बाल

हल्की हल्की हवाओं के साथ

जुगलबन्दी करके,

मेरे चेहरे को स्पर्श करे-

और फिर उसकी मासूम मासूमियत,

प्यार का उमार,

मेरी चाँद!


मेरी चाँद,

जब भी खुल के खिलखिलाये,

तो पूरी कायनात एक सलीके से

रौशन हो जाये,

फिर-

उसकी पाक काया,

और उसकी खुद में मौजूदगी,

मेरे ऊपर छाप छोड़ने को आतुर!

मेरी चाँद!


मेरी चाँद,

जब भी धीरे-धीरे, हौले-हौले

शरमाये और,

फिर अपनी प्यारी मुस्कान बिखेरे,

मैं अपने आप को भूल के

उसे खुद में ढूँढू,

मेरी चाँद!


मेरी चाँद,

कुछ भी बोलने के पहले न

कुछ ज्यादा सोचे और न समझे

मेरी चाँद!


मेरी चांद

जो बेबाक हो,

जो बेझिझक हो,

जिसके हर सपने उसके अपने हो,

चाँद सितारों का पूरा आसमान

उसका अपना हो, 

जिसके सपने अपने आप में

एक गाथा बने,

और,

उसके सपनों को पूरा करने को

बेचैन मेरी आँखें,

मेरी चाँद!


मेरी चाँद

जिसके सारे सपने उसके अपने हो,

वो वही सपने जो खुले आसमान में

आज़ाद पंछियों की तरफ

कहकहे लगाने के,

जो उसने कभी देखे थे-

उसके सारे सपनों को पूरा करके, 

उसे अपनेपन की प्रकाष्ठा पर ले जाऊँ

ऐसी हो मेरी चाँद!


मेरी चाँद,

जो सबसे पहले खुद को समझे,

जिसकी खूबसूरती चहूँओर

दिशाओं में अपनी चमक बिखेरे,

जो एक बार चले तो,

चलते चले चलते चले,

और लगे कि पूरा जहां

उसके पीछे हो,

मेरी चाँद ऐसी हीं हो,

ऐसी हीं हो मेरी चाँद!

ऐसी हीं हो मेरी चाँद!


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