मेरी बिटिया
मेरी बिटिया
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खिली रहती है सुनहरी धूप भीतर
भले हो बाहर मेघाच्छादित आकाश.
ऊष्णता का होता रहता है संचार मेरी रगों में
हवा कितनी भी हो सर्द, कंपा रही हो बाहर.
जानना चाहोगे ज़रूर तुम
इस चमत्कार का राज़,
कोई और नहीं, ये है मेरी
बिटिया का साम्राज्य.
घुला रहता है शहद कुछ यूँ
मेरे नस-नस में,
ईर्ष्या हो मधुमक्खियों को भी
जान लें यदि वे इसे.
गूंजता रहता है कानों में
सुमधुर संगीत,
भूल जाये जिसे सुनकर कोयल भी
अपने गीत.
जानना चाहोगे ज़रूर तुम
क्यूँ रहता सदा यहाँ सावन का महीना,
कुछ और नहीं, ये है मेरी
बिटिया के निश्छल स्नेह की महिमा.
कौन चाहता है पाना धन,
पुरस्कार या प्रसिद्धि ?
विश्व की सर्वाधिक मूल्यवान और
सुंदरतम समिधा तो है मेरे पास –
मेरी बिटिया !