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Richa Baijal

Romance

3  

Richa Baijal

Romance

मेरे तुम

मेरे तुम

2 mins
280

धड़कनों के चलने का एहसास हो "तुम"

दूर हो कर भी मेरे बहुत पास हो "तुम"

मेरी मोहब्बत का आगाज़ हो "तुम"

'जाना' बहुत ख़ास हो "तुम"


मैं जो न रहूँगा, तो कैसे रहोगी

ये नग्मे वफ़ा के कैसे जीओगी

'तीन’ तरह के तन्हा मौसम दे रहा हूँ

एक को मैं खुद जी रहा हूँ

अजी सुनो! दूर चली जाओ, ये फिर एक बार कह रहा हूँ।।


जी लोगी मेरे बिन, जो साथ न रहूँगा एक दिन

एक घर बना लो और सपनों में किसी और को बुला लो

ये दूर चले जाने तर्क कैसा है?

वफ़ा की शुरुआत में 'बेवफाई' जैसा है।

पास आने से डरता है दिल, नियमों की नयी पहेली है

ये मोहब्बत अब न पहले जैसी है।।


दिल टूटने से बचाने की हर एक कोशिश जारी है

किश्तों में हैं इश्क मिला

प्रीमियम वफाओं से भरा है

वक्त पर छोड़ी 'मुनाफे’ की ज़िम्मेदारी है

मोहब्बत में अब एल.आई.सी. की साझेदारी है


मैंने पूछा ,"रह सकते ही हो जब मेरे बिना, तब फ़िक्र इतनी क्यों रखते हो?

करते हो हर बात में ज़िक्र मेरा, फिर मेरे बिना रह लेने की ज़िद्द क्यों करते हो?

हो 'पाक़' वफ़ा में तुम भी और 'गैरों -की-इबादत’ का 'फितूर' हमें भी नहीं

फिर तन्हाई के उन मौसमों का ज़िक्र क्यों करते हो?"


रहे वो खामोश

कुछ 'मौसम' गुज़र गए

ये 'इंटरनेट' का ज़माना है साहिब,

फिर भी न जाने कितने अश्कों के सैलाब इन आँखों से गुज़र गए

वक्त को इलज़ाम भी क्यों दें, 'मौसम-ए-इश्क' को इंतज़ार बताया था उस 'तस्वीर' में

जो हम 'इंतज़ार’ न करते तो तस्वीर झूठी लगती, जिसमें कुछ सोचकर तुमने मुझे बनाया था

मौसमों की नुमाइश थी, लेकिन मेरी तो बस इक तुम्हारे साथ की ख्वाहिश थी।


हैं मुकम्मल सांसें और इंतज़ार में "तुम"

है कुछ ख्वाहिशें जिनका जवाब सिर्फ "तुम"

है एक मौसम का आना बाकी जिसका एहसास केवल "तुम"

"जाना”, मुझमें ही हो शामिल "मेरे तुम"


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