मेरे शुभचिंतक
मेरे शुभचिंतक
परीक्षा का तनाव, समय की किल्लत सब खाये जा रही थी,
ऊपर से पेट की आग, बाहर-भीतर जलाए जा रही थी।
बेबस, लाचार, निरीह होकर जैसे ही कमरे से निकला था,
अचानक एक सज्जन टोके, जिनका दिमाग थोड़ा टकला था।।
वह महापुरुष, महा-बतक्कड़ दुलराते हुए बोले 'पहचानते हो?'
समयाभाव में निपटाते हुआ पूछा 'आप मुझे.. जानते हो?"
झेंपते हुए बोले, "क्या अच्छा मज़ाक कर लेते हो आप !!"
मन तो कर रहा था, भाग जाऊँ धर के दो कंटाप।
खुद को सम्भाला और छठीं ज्ञानेंद्रिय को किया एक्टिव,
पर कोई जवाब नहीं सूझ रहा था सटीक और अट्रैक्टिव।
उनकी कुटिल मुस्कान मुझे खाये जा रही थी,
और ढिंचक पूजा बैकग्राउंड में गाये जा रही थी।
अखिल ब्रह्मांड का किलवीसी दिमाग लगाया,
और तत्छण, तत्काल तकनीकी जवाब पाया,
हँसते हुए बोला, “अच्छा.. तो आप एफ़बी, इंस्टा वाले हैं",
मुँह लाल हुआ उनका, गुस्से में बोले "घण्टा वाले हैं"
“मोबाइल का कीड़ा नहीं जो जंगल में भी मंगल करता हूँ",
"तुम्हारा उत्तर वाला पड़ोसी हूँ, तुम्हारे बगल में रहता हूँ।"
उनका गरमाया हुआ खून मुझे गलाये जा रही थी,
और 'आप' से 'तुम' वाली इज़्ज़त मुझे रुलाये जा रही थी।।
कहीं चन्द्रगुत का मूड तो नहीं, मेरा बनवास कराने का,
या अब समय आ गया है, दूसरों पर ध्यान लगाने का।।