कोरोना और गाँव
कोरोना और गाँव
ध्यान से सुनो सब, एक राज खोल रहा हूँ,
मैं तुम्हारा बिछड़ा हुआ गाँव बोल रहा हूँ।
पस्त हो चुका था एकदम,
बच्चों की भांति रोता था हरदम।
सदमें में था, तेरा यू मुझसे दूर चले जाने से,
ख्वाहिश थी, बुला लू तुझे किसी बहाने से।
तड़पता था मैं, तेरी इक आवाज़ के ख़ातिर,
तरसता था, तेरे बचपन के अंदाज़ के ख़ातिर।
टूट चुका था पहले, अब हौसला बढ़ गया है,
कोरोना के बहाने, तुझ पर मेरा रंग जो चढ़ गया है।
जब आ ही गए हो, तो अब जाना नही,
पराये है वहां कोई जाना पहचाना नही।
सब कुछ दूँगा तुम्हें, मेरी औलाद हो तुम,
मजदूर उनके लिए, मेरे लिए फौलाद हो तुम।
अब देखो मुझे, कैसे मद मस्त डोल रहा हूँ,
ध्यान से सुनो, मैं तुम्हारा गाँव बोल रहा हूँ।